जुनून और जिद से भरी नारी, चुनौतियों पर पड़ी भारी; फिल्म में खल रही जान्हवी की आंखों की उदासी
यह फिल्म उस बहादुर महिला की कहानी है, जो कारगिल जंग के दौरान भारतीय एयरफोर्स के पायलट दल में शामिल एकमात्र महिला थी। हालांकि अब ये संख्या बढ़कर 1600 से ज्यादा हो चुकी है। गुंजन का सफर जिद और जुनून के रथ पर सवार रहा है। अपने पिता से उसे उम्मीदों का दामन कभी न छोड़ने की सीख मिली।
फिल्म में बताया गया है कि शादी और रसोई की जिम्मेदारियों तक सीमित सोच रखने वाले समाज और सिस्टम से जूझते हुए गुंजन किस तरह इतिहास रचती है। करन जौहर ने इस अहम कहानी को कहने की जिम्मेदारी नवोदित डायरेक्टर शरण शर्मा और एक फिल्म पुरानी जान्हवी कपूर को सौंपी। साथ ही उन्हें पंकज त्रिपाठी, विनीत कुमार सिंह, मानव विज और आएशा रजा मिश्रा जैसे अनुभवी कलाकारों का साथ भी मिला।
पंकज त्रिपाठी फिल्म में गुंजन सक्सेना के पिता के रोल में हैं। जिन्होंने अपनी सहज भाव भंगिमाओं से एक प्रगतिशील सोच वाले पिता के रोल को एकबार फिर जीवंत किया है। इससे पहले 'बरेली की बर्फी' में उन्होंने कृति सैनन के पिता के तौर पर चौंकाया था। यहां भी वो कूल डैड बने हैं।
बच्चों खासकर बेटियों की बेहतर परवरिश की सीख उनके किरदार से मिल सकती है। फिल्म बाप-बेटी के रिश्तों के संसार में दस्तक तो देती है, मगर उसकी गहनता में नहीं जा पाती। हालांकि इससे फिल्म को एक अलग चमक मिल सकती थी।
फ्लाइट कमांडेंट दिलीप सिंह की पुरूषवादी सोच को विनीत कुमार सिंह ने अच्छे से पेश किया है। कमांडिंग अफसर बने मानव विज के चेहरे में सख्ती नजर आती है। वे भी अपने काम को बेहतर कर गए हैं। हालांकि गुंजन बनीं जान्हवी कपूर और उनके भाई बने अंगद बेदी दोनों अपना असर छोड़ने में असफल रहे हैं, ऐसा शायद फिल्म की राइटिंग की वजह से भी हुआ है।
डायरेक्टर शरण शर्मा ने किरदारों को अंडरप्ले करने के चक्कर में कई जगह नीरस कर दिया है। गुंजन सक्सेना जैसी महत्वाकांक्षी युवती की ऊर्जा निखर कर सामने नहीं आ पाती है। जान्हवी ने बेशक वो रंग भरने की कोशिश की होगी, पर वो स्क्रीन पर ट्रांसलेट नहीं हो पाई। उनकी आंखों की उदासी पूरी फिल्म में दिखाई दे रही है, जबकि वहां चमक की दरकार थी।
फिल्म में गुंजन के आर्मी ऑफिसर भाई बने अंगद बेदी भी वो आभामंडल नहीं क्रिएट कर सके, जो एक सेना के अफसर का होता है। वो पर्दे पर ज्यादातर वक्त दीन-हीन लगे हैं।
बीते हफ्ते लोगों ने 'शकुंतला देवी' में विद्या बालन की जानदार परफॉर्मेंस देखी है। ऐसे में यहां दोनों बायोपिक के बीच तुलना होना स्वाभाविक है और अदाकारी में विद्या बालन जैसी परिपक्वता हासिल करने में जान्हवी को वक्त लगेगा।
फिल्म के डायलॉग भी साधारण से हैं। 'आंसू बहाने से अच्छा पसीना बहा लेते हैं' और 'जो मेहनत का साथ नहीं छोड़ते, किस्मत उनका साथ नहीं छोड़ती' जैसे डायलॉग बड़े बेसिक से हैं, इसलिए ज्यादा असर नहीं छोड़ सके। रेखा भारद्वाज ने जो गाना गाया है, वह फिल्म की जान है। बाकी संगीत में अमित त्रिवेदी असर पैदा करने से चूक गए।
पूरी टीम का ध्यान एयरफोर्स पायलट की ट्रेनिंग की तकनीकियों पर टिका रहा है। वो अच्छा बन पड़ा है। एसएसबी सिलेक्शन सेंटर का पोर्शन भी दिलचस्प है। कारगिल को जॉर्जिया में रीक्रिएट किया गया, जहां एरियल शॉट्स अच्छे लिए गए हैं।
'गजनी' और 'रब ने बना दी जोड़ी' जैसी फिल्मों में कैमरा वर्क कर चुके मानुष नंदन ने फिल्म को खूबसूरत बनाया है। फिल्म आखिरी आधे घंटे में एंगेज रखने में बहुत हद तक सफल रहती है। बाप-बेटी के खूबसूरत रिश्ते और सीख को भी बखूबी कैमरे में उतारा गया है। इन सबके बावजूद फिल्म की पेशकश में जरा सी कसक रह गई।
गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल
कलाकार- जान्हवी कपूर, पंकज त्रिपाठी, विनीत कुमार सिंह, मानव विज
अवधि- 1 घंटा 51 मिनट
स्टार- 3/5
कहां देखें- ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर
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